Last modified on 2 जुलाई 2015, at 14:34

आम्बेडकरीय कविता - 7 / प्रेमशंकर

उसका नंगापन—
कब नंगापन दिखा जाए
यह सवाल झंडे-सा फहर रहा है
अछूत मर रहा है
पिस रहा है
नंगा चौराहे पर पुलिस से
पिट रहा है
असहाय गाँव-खेतों में
अत्याचार सह रहा है
भला प्रजातन्त्र में
ऐसा क्यों हो रहा है?
प्रतिक्रियावादी अपने पीछे क्यों
एक भयानक इतिहास बो रहा है?