Last modified on 26 फ़रवरी 2020, at 20:05

आम आदमी की मांग / पूनम मनु

नहीं देखना है मुझे
मोहनदास करमचंद गांधी जी की,
आँखों का कोई सपना
और ना ही सुनने हैं
मीठी बातों की भट्टी में उबलते
जवाहरलाल नेहरू की नई पीढ़ी के भाषण
न ही किसी के 'अच्छे दिनों' से मुझे कुछ चाहिए
मुझे तो बस मेरा वह भारत दो,
जहाँ पर पैदा हो पेट भर अनाज़,
बड़ों का आदर,
भगत सिंह के प्रेम जैसा प्रेम,
अल्हड़ आँखों में मासूम सपने और
वह मित्रता...
जो राजा और रंक का भेद मिटा दे
किसी भी पार्टी के नेता के दिखाए
सब्ज़बाग में नहीं उगते
मुझ आम आदमी की
ज़िदगी बसर होने के साधन
जान चुका हूँ मैं
बहुत बड़े-बड़े स्वप्न देखते हैं ये
ये लोग आम नहीं।