Last modified on 12 अगस्त 2014, at 11:15

आयल पावनि फगूआ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

आयल पावनि फगूआ,
हम नहि बनबै’ अगुआ,
लगुआ-भगुआ संग रंगमे मनुआँ तीतल रे।
बहि रहल’ अछि पछबा
आयल मास अलछबा
गछबा कऽ धरतीसँ पतझड़ जाड़ो बीतल रे।
गामक करकट कूड़ा,
लऽ कऽ करबै’ धूड़ा,
पूरा कऽ मलि, मैल छोड़ाओत ई जगतीलल रे।
पू-पकमानक ढेरी,
पयबामे की देरी
फेरी दऽ दऽ पूर पसेरी खा जग जीतल रे।
ने दाही, ने जरती,
ने जोतल, ने परती
धरती राग वसन्त - सुरभिसँ शीतल हीतल रे।
मामी लगमे मामा
आइ बनल छथि गामा
वामद दहिना के तकैछ, अपने मे रीतल रे।