♦ रचनाकार: अज्ञात
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आया अयोध्या वाला कुवर दो
(१) राजा जनक तो जग में हो ठाड़ा
शोभा वर्णी न जाई
उठ सभा दल देखण लागी
उग्या भवन का तारा...
कुवर दो...
(२) यो रे धनुष कोई सी हाले न डोले,
लख जोधा आजमाया
रावण सरीका पड्या खिसाणा
भवपती गरब हरायाँ...
कुवर दो...
(३) लक्ष्मण सुणो बंधु रे भाई,
गुरु की नी आज्ञा पाई
डावी भुजा सी धरणी क तोकु
धनुष की कोण बिसात...
कुवर दो...
(४) गुरु की आज्ञा पाई राम न,
चरणो म शीश नमाया
इनी रे भूमी पर है कोई योद्धा
धनुष का टुकड़ा उड़ाया
कुवर दो...
(५) सिता रे ब्याही न राम घर आया,
घर-घर आनंद छाया
माता कौशल्या न आरती सजाई
राम बधाई घर लाया...
कुवर दो...