हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
आया आया री सासड़ सामण मास डोर बटा दे री पीली पाट की
आया तो बहुअड़ री आवण दे जाय बटाइयो अपने बाप कै
आया आया री सासड़ सामण मास पटड़ी घड़ा दे चन्दन रूख की
आया तो बहुड़ री आवण दे जाय घड़ाइयो अपणे बाप कै
आया आया री सासड़ सामण मास हमनै खंदा दे री म्हारे बाप कै
इब तो बहुअड़ री खेती का काम फेर कदी जाइयो री अपणे बाप कै