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आया समय परीक्षा का / शकुंतला कालरा

हरदम मौज उड़ाता अम्बुज,
पढ़ना-लिखना उसे न भाता।
पैन उड़ाता किसी-किसी का,
किसी-किसी का खाना खाता।

सूझे बस शैतानी उसको,
कापी, पुस्तक, टिफिन गिराता।
करता रहता तंग सभी को,
हरदम रहता खूंब खिझाता।

आता गुस्सा उस पर सबको,
फिर भी सब कुछ सहते रहते।
कुढ़ते रहते मन ही मन वे,
पर टीचर से कभी न कहते।

आया समय परीक्षा का जब,
देख किताबें वह घबराया।
पछताया करनी पर अपनी,
कोई उसके पास न आया।

होश हुए गुम उसके अब तो,
बार-बार रोता बेचारा।
आया समझ न उसको कुछ भी,
पढ़-पढ़ सभी किताबे हारा।

अब पछताए क्या होता है,
सारा खेत चुग गई चिड़िया।
पाया फल शैतानी का सब,
तुम अब खेलो गुड्डे-गुड़िया।