आया है नया दौर, नया मन बनाइए,
घायल दिलों के घाव पर मरहम लगाइए ।
लाना है अगर आदमी को आदमी के पास,
काँटों की जगह प्यार की ख़ुशबू बसाइए ।
रिश्तों का आर्इना बहुत नाज़ुक है दोस्तो,
शीशे के महल से नहीं पत्थर चलाइए ।
ऊँची हवेलियों का प्यार कहाँ खो गया,
उनमें भी कभी प्रेम का, दीपक जलाइए ।
करते रहे जो उम्र भर रोटी की तिजारत,
कुछ तो वतन के वास्ते ज़ज्बा जगाइए ।
लड़ते रहे जो उम्र भर कुर्सी के वास्ते,
उनको भी भरत की तरह जीना सिखाइए ।
सच्ची तड़प हो अगर तो मिलते हैं राम भी,
पहले तो अपने आप को 'शबरी’ बनाइए ।
मैं अजनबी हूँ आज भी अपने ही शहर में ,
यह दर्द 'बन्धु’ का कभी दिल से लगाइए ।