किसने सोचा होगा कि स्नेहिल गर्दन एक दिन कुर्सी की बाँह बन जाएगी, उड़ने और ख़ुश होने को आतुर टाँगे चार साधारण डण्डों में जड़ हो जाएँगी? आरामकुर्सियाँ कभी फूलों पर जीमने वाली नेक दिल प्राणी थीं। फिर उन्होंने आसानी से ख़ुद को पालतू बनने दिया और आज वे चौपायों की सबसे निकम्मी प्रजाति हैं। वे अपना हठ और हिम्मत खो चुकी हैं। अब वे दब्बू बन गई हैं। उन्होंने ना तो कभी किसी को पैर तले रौंदा और ना ही किसी के संग सरपट दौड़ीं। यक़ीनन, उन्हें व्यर्थ हुए जीवन का भान है।
आरामकुर्सियों की चरचराहट से इनके अवसाद का पता चलता है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार