छातियों में धँस-धँस कर
फट रहे हैं प्रक्षेपास्त्र
माताओं के गर्भ में नित्य
बन रहे हैं सूराख़
गगनभेदी हुंकार से
भिड़ता है बार-बार
एक ही आर्तनाद
नहीं दबा पा रहा
इसे बमों का आतंक....
मिसाइलों के मलबों के नीचे
कुलबुला रहे हैं,
'अजन्में शिशु'
पनप रहे हैं
कई-कई अष्टावक्र
चाट-चाट कर बस
बारूद ।