Last modified on 19 मई 2010, at 21:46

आर-पार / नीलेश रघुवंशी

मेरे मन में कुछ सपने हैं
नींद में वे और और उजागर हो जाते हैं
दिखते हैं मुझे सपनों में सपने।

जानते हैं हम स्वप्न में
प्रेम के अनन्त रहस्य
डूबते हैं उतराते हैं
करते हैं प्यार अपने ही समुद्रों के आर-पार
दुनिया तमाम सुन्दर चीज़ों से भरी पड़ी है।

एक किलकारी की तरह
खुलती है नींद
खुलेगा हमारा भेद एक दिन मंगल-गीत की तरह।