आर-पार भीतर-बाहर से जंगल घने हुए,
चौक साँतिए दीवारों पर अब भी बने हुए।
एक तने की ओट,
चला आता भैंसा अरना;
आज सत्य के चौराहों पर
झूठ दिए धरना;
शांति कपोत उड़े तो
देखा मुक्के तने हुए।
टुकड़े-टुकड़े धूप हुई,
हमने मानी छाया;
देवि, प्राण, माँ सहचरि को ही
कहा गया माया;
रक्त-कमल छिछली कीचड़
में अब भी सने हुए।
दलदल के व्यामोह
रास्ते सिर्फ बनैले हैं,
नज़दीकी रिश्ते-
रिश्तों के स्वाद कसैले हैं;
धर्मयुद्ध कुरुखेतों माँझे
अब भी ठने हुए।