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आलिंगन का स्वाद / समीर बरन नन्दी

जंगली डगर पर चल रहा हूँ अकेला
फिर भी अकेला नहीं हूँ ।

हे जीवन... हे जीवन... वादा करो
नदी पर आकर इस जंगल के आगोश में
रोज़ कुछ समय बिताओगे ।

अपने आप से मिलकर
यहीं सेमल के बीज की तरह
कुलाचे मारता है मन-यौवन ।

कैसे छोड़ सकता हूँ
इस एकांत में --
इस आलिंगन का स्वाद ।