जीवनदान करें, बेला है बलिदानों की आज !
प्रात: से रवि टेर रहा है
ललित प्रभा का बीज उगाओ
धरती के कोने-कोने में
मानवता का अलख जगाओ
त्याग, दया, करूणा के घर में,
सफल बनें सब काज !
कण-कण, तृण-तृण आमंत्रित कर,
महा शक्ति का प्राण जगाओ,
फूलों से कोमलता लेकर
नवजीवन के गीत सुनाओ
कभी आस्था के आंगन में, गिरे न कोई गाज़ !
स्वत्व, शौर्य और स्वाभिमान का,
और भविष्य का भान रहे
लुप्त न हो निज-पन अपना
निज-शान रहे, यह ध्यान रहे
आलोकित कल होगा, चाहे रहे अंधेरा आज !
जीवनदान करें, बेला है बलिदानों की आज !