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आवत राम रघुकुल चंद / महेन्द्र मिश्र

आवत राम रघुकुल चंद।
कुशल मंगल सहित-हर्षित लखन जानकी संग।
हरसी बरसहीं सुमन सुरनभ सरजू बढ़त उमंग।
सिद्ध मुनि नरनाग किन्नर सबहीं होत अनंद।
सुयश सुर गंधर्व गावत बाजत सुभग मृदंग।
जयति जय-जय शब्द चहुँ दसि गंग लेत तरंग।
चढ़ि विमान सुजान राजत भालु कपि हैं संग।
धनुष कर सर छविमनोहर अंग-अंग अनंग।
द्विज महेन्द्र सुरूप निरखत भरथ हो गए दंग।
बार-बार उमंग बाढ़त जइसे उदधि तरंग।