जितना कह देना आवश्यक था
कह दिया गया : कुछ और बताना
और बोलना-अब आवश्यक नहीं रहा।

आवश्यक अब केवल होगा चुप रह जाना
अपने को लेना सँभाल
सम्प्रेषण के अर्पित, निभृत क्षणों में।

अब जो कुछ उच्चारित होगा, कहा जाएगा,
सब होगा पल्लवन, प्रस्फुटन
इसी द्विदल अंकुर का।

बीनते हुए बिखरा-निखरा सोना
फल-भरे शरद का
हम क्या कभी सोचते हैं : ‘वसन्त आवश्यक था?’

नयी दिल्ली, 1 जुलाई, 1968

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