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आवाज़ / देवयानी

आवाज़ के पुल पर बैठ
ताकती
तेज़ नदी की धार को

बाँटती उसे जो बह गया
सहेजती
कितना कुछ जो बचा रहा

जीवन है
तो बातें हैं
आवाज़ की डोर जिसे बाँटे है
सोचो यह डोर भी न हो
कोई ठिकाना है
हवा का कोई झोंका
कब किसे नदी को सौंप दे

आवाज़ का पुल थाम
भर लेते हैं अँजुरी में पानी
छोड देते हैं पानी में दीप

इस पुल से
देर तक नज़र आती है
दूर तक झिलमिलाती रोशनी