भीड़ में चेहरे नहीं दिखते
दिखते हैं सिर से भिडे सिर्फ़ काले सिर
अबूझ रहस्यों और तिलिस्मों से भरे
समवेत स्वर में अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते
क्या कुछ आवाजें सिर्फ़ सुनाये जाने के लिए होती हैं
सुने जाने के लिए नहीं?
भीड़ में चेहरे नहीं दिखते
दिखते हैं सिर से भिडे सिर्फ़ काले सिर
अबूझ रहस्यों और तिलिस्मों से भरे
समवेत स्वर में अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते
क्या कुछ आवाजें सिर्फ़ सुनाये जाने के लिए होती हैं
सुने जाने के लिए नहीं?