दफ्तर आते ही सुबह सुबह नमस्कार कहतीं आवाज़ें
खिड़कियों के बाहर लॉन के उस पार चाय की दुकान से आतीं आवाज़ें
हँसी बतंगड़ों भरी आवाज़ों में शामिल होतीं समय परिस्थिति की आवाज़ें.
आवाज़ों के इतिहास पर वह सोचता
सफेद कागज़ों पर उनका भूगोल बनाता
आवाज़ों के फैलाव का अन्त न पाकर
हर सुबह होता आतंकित
एक दिन पाया खुद को बेचैन आवाज़ों में शामिल होने को
खिड़की से छलाँग लगाते वक्त कानों में साँ साँ गूँज रही थीं आवाज़ें.