बीते हुए पल आवारा हो चुके है
रोज़ यादों में घुसे चले आते हैं
छाती की खिड़की से बाहर
फेंकने पर लहूलुहान हो जाते है
कितने बेशर्म हैं यह
जख्मों का वास्ता दे कर
मेरी नज़मों के अनचाहा
हिस्सा हो जाते हैं
बीते हुए पल आवारा हो चुके है
रोज़ यादों में घुसे चले आते हैं
छाती की खिड़की से बाहर
फेंकने पर लहूलुहान हो जाते है
कितने बेशर्म हैं यह
जख्मों का वास्ता दे कर
मेरी नज़मों के अनचाहा
हिस्सा हो जाते हैं