Last modified on 23 जून 2017, at 19:59

आवाहन / मनोज चौहान

मैं करता हूँ
आवाहन तेरा
उठ, जाग युवा
हुंकार भर
हो जा तू उद्घोषक
क्रांति का
हर प्रपंची का
प्रतिकार कर।

गर जीना है
स्वाभिमान से
तो मनोबल को अपने
विशाल कर।

बाधाएं आएँगी
आने दे
सीना तान तू खड़ा रह
कश्ती डोलेगी
तुफानों में
लहरों को चीर
तू आगे बढ़।

बेड़ियाँ जकडे.गी
पावं तुम्हारे
हावी होंगी
संकीर्णताएं भी
लक्ष्य पर नज़रें
तुम पैनी रखना
यौवन को अपने
ओ साथी!
जाया कभी तुम
मत करना।

कंटकों से भरी हो राहें
पथरीली चाहे हो जमीन
अडिग रहना तू
हमेशा ही
खिल जायेंगे फूल
उष्ण धरा पर भी।

हार से कभी
मत तू डरना
याद रखना केवल
इतना ही
करेगा स्पर्श जब
शिखरों का
तो उस जीत का कोई
विकल्प नहीं!