Last modified on 23 जनवरी 2016, at 21:47

आव कविता बांच / मनोज पुरोहित ‘अनंत’

होठां सूं निकळ
कानां तांई पूगी
कानां रै बाद
कठै गमगी कविता!

निरा सबद नीं है
म्हारी कविता
भीतर री लाय है
बळत है बरसां री
हाय है
मजूरां री-करसां री।
 
सोनल सुपना
रमै सबदां में
सबद उचारै राग
सुळगावै आग
जद रचीजै-कथीजै
कोई कविता
 
आव कविता बांच
मिलसी वा ई आंच ।