Last modified on 21 नवम्बर 2017, at 21:20

आशाएँ / कविता पनिया

खेतों की गीली मिट्टी में दबे केंचुए सी आशाएँ
मन की ज़मीन पर किलबिलाती रहती हैं
केंचुए मिट्टी की परत दर परत कुरेद कर नवंकुरों के लिए द्वार खोल देते हैं
जहाँ कलियाँ खिलती हैं
भंवरे गुंजार करते हैं
आशाएँ भी कुरेदती हैं वर्षों से निराशा में घिरे मन को
जहाँ जीवन जन्म लेता है
आपनी जड़ें जमाता है
मन की मिट्टी में मचलते हैं आशा रुपी केंचुए
इन्हें मत रोको वर्ना जमीन पथरीली हो जाएगी
फिर सुरभित पुष्प नहीं खिलेंगे
आशाओं को बचाना है
मर जाने से