मैं लिए हूँ
प्राण की यह रिक्त झोली
माँगता हूँ स्नेह-निर्मल,
देखना बस चाहता हूँ
हाथ ममता का
उपेक्षित शीश पर !
यदि पा गया तो —
प्राण में भर वेग दुर्दम
और धुन तूफ़ान-सी लेकर
अभावों को मिटाने
बढ़ चलूंगा !
वेदना-अवसाद के,
अवसान के युग
जाएंगे बन
हर्ष के
उत्थान के क्षण !
1941