आशिष उनकी नहीं फली,
पर लाज मुझे लगती है!
कैसी बात किसी ने पूछी!
तू अब तक छूछी की छूछी,
उनकी होकर, जिस श्री से
श्रील बनी जगती है!
क्या उत्तर दे मेरी ममता
औरों से मेरी क्या समता!
उनकी मर्जी जिसे सिंगारें;
मेरी साध सती है!
पानी पर ही प्राण अघाए,
आँचल पर जाड़ा कट जाए;
माया अपनी सिद्धि दिखाकर
मुझको क्या ठगती है!