ये त्रिभुवन के त्रास! विश्व-उर के ये भाव उदास!
अधूरे ये मेरे उच्छवास!
विश्व-व्यथा अव्यक्त! व्यक्त ये! हैं असार उद्गार!
हाय कवि का अतृप्त संसार!
किन-किन विकल वेदनाओं का करे हृदय व्यापार?
तरसना ही जीवन का सार!
कहता है संसार, अरे कवि, कहता है संसार--
निर्झर हैं उद्गार, छिपे हैं--इन में सिंधु अपार!
बहाए जा जीवन की धार।
कभी विसर्जन के बदले यह पाएगा उपहार--
बहते होंगे अखिल प्रवाहों में तेरे उद्गार,
स्वरों में तेरी ही झंकार!