बरसात
धरती को नहला रही है
और धरती
बच्चों की तरह
ताज़गी के अहसास के साथ
सिहर-सिहर उठती
नज़र आती है।
बरामदे के साये से
खुले आसमान में छाए
बादलों को देखता हूँ
सोचता हूँ :
ऐसा ही एक दिन था
ऐसा ही वो दिन था !
बरसात
धरती को नहला रही है
और धरती
बच्चों की तरह
ताज़गी के अहसास के साथ
सिहर-सिहर उठती
नज़र आती है।
बरामदे के साये से
खुले आसमान में छाए
बादलों को देखता हूँ
सोचता हूँ :
ऐसा ही एक दिन था
ऐसा ही वो दिन था !