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आसपास / संगीता गुप्ता

आसपास
भीड़ का फैलाव
ढेर सारी गहमागहमी
फिर भी सन्नाटे का आभास

सालती रहती है
सब कुछ की व्यर्थता

लगातार रीतती जिन्दगी में
खुद छीज रही हूँ मैं