आसमान गुमसुम
रहता है ।
सूरज के बिगड़े घोड़ों की
भारी-भारी टापें
जिनकी धमकों से औरों के
रोएँ-रोएँ काँपें
ऐसी विकट
जुल्म की सत्ता
छाती पर चुप-चुप
सहता है ।
मन्दिर-मस्जिद का बुनियादी
पत्थर-पत्थर गलना
पर्वत-पर्वत से कतरा
नदियों का
राह बदलना
देख विवश टिम-टिम आँखों से
बिन बोले क्या-क्या
कहता है ।