कौन रोक सका है?
या रोक सकता है
तूफान या भूचाल को!
ये तो सदियों से आये
आते रहेंगे मनुजों....
ऐसे में —
जो कमजोर हैं
उनका उखड़ जाना
स्वाभाविक है
किन्तु? फिर भी?
कम से कम
अपनी जगह
स्थिर रहने का प्रयास
हमें अवश्य करना है!
अन्यथा ..
किसी टूटे हुई दर्पण की भांति
हो जायेंगे हम खण्ड-खण्ड
अवशेष भी न बचेंगे हमारे
इतिहास बन जायेंगे -
यूनान मिश्र रोम की तरह...
बहरहाल —
इन बुरे दिनों में भी
अनेक स्वार्थों के बीच
तेरी ही पुरातन परम्पराओं का
आसरा है ऐ भारत माँ...