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आस्था - 30 / हरबिन्दर सिंह गिल

क्या संसार को
सीमाओं से
मुक्त देखने की अभिलाषा
एक वास्तविकता है
या सिर्फ एक विडंबना।

मुझे मालूम नहीं
मेरी यह कल्पना
कभी साकार होगी या नहीं
परंतु विश्वास है
मानव जरूर समझेगा
एक दिन
कि नई रेखाएं
सिर्फ घर हैं, मुसीबतों का
अपने लिए भी
और
पड़ोसियों के लिए भी।

और ये सीमाएँ
एक प्रश्नचिन्ह छोड़ जाती हैं
क्या समाज
नये देशों की स्थापना
तब तक करता चला जाएगा
जब तक राष्ट्रीयता शब्द
अपना महत्व नहीं खो देता।