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आस रै जूण गेड़ै / राजूराम बिजारणियां

फेरूं
चेतन होवै

बुझतां दिवलां री लौ।

संभळै

घिरतो-पड़तो
सोच परो माणस-

कांई दूर
कांई नेड़ै..?

जद ताणीं
चढ रैई है जूण
आस रै जूण गेड़ै!