मैंने सोचा कि लो आप आ ही गए,
ऐसे रुक-रुक के आती रहीं आहटें।
आप आते, न आते सहर आ गई,
रात भर हम बदलते रहे करवटें।
जाम-ओ-मीना में बस तिश्नगी रह गई,
लाल आँखों में बाक़ी रहीं हसरतें
दिल के हिस्से में आईं कुछ इक तल्ख़ियाँ,
और बिस्तर में बाक़ी रही सलवटें।
मुजमिद से बदन लम्स की शिद्दतें,
यूँ मुसलसल निभाते रहे चाहतें
फ़ासलों पर रही वस्ल की राहतें।