आ अब लौट चलें
किस रंग खिलीं कलियाँ
दुबकी आई क्या छिपकलियाँ
सूनी रोई होंगी गलियाँ
घर लौटूँ तो बताना
जो स्वप्न बुने मैंने
जो गीत चुने मैंने
किस्से जो गुने मैंने
मैं आऊँ तो दोहराना
थक सा गया है थोडा
मेरीे बाजुओं का जोडा
अब पाँव घर को मोडा
अपनी पलकें तुम बिछाना