आ रहा महामानव, वो देखो।
दिशा विदिशाओं में हो रहा रोमांच हैं
मर्त्य धूलि की घास पर।
सूर्य लोक में बज उठा शंख हैं,
नरलोक में बजा जय डंक है -
आया माजन्म का पुनीत लग्न।
आज अमा रात्रि के जितने थे दुर्ग तोरण
वे धूलि तले हो गये सभी मग्न।
‘उदय शिखर पर जाग रहा ‘माभैः अभ्युदय!’
मन्द्रघोष हो उठा आकाश में।
‘उदयन’
1 वैशाख 1948