Last modified on 16 मई 2010, at 10:22

इंतज़ार / तलअत इरफ़ानी


वोह सारे खुश्क पत्ते
जो हमारे पाँव के नीचे
कुचल कर चीख उठठे थे,
मुझे उनकी सदायें,
नज़्म करने के लिए कहकर
गजरदम की गयीं, तुम
शाम तक वापिस नहीं लौटीं
तो मैं दिन भर की यह लिख्खी हुयी नज़्में
भला किसको सुनाऊँगा?
किसे कैसे बताऊंगा ?
कि मौसम खुशक पत्तों का नही
फूलों की आमद है।