Last modified on 29 दिसम्बर 2013, at 08:58

इंतजार / राजा खुगशाल

नहीं भी रहूँगा मैं
इस मकान के इन कमरों में
तब भी इस छत को संभालती रहेंगी
जंगल के वृक्षों की सुडौल कड़ियाँ

कायम रहेंगे दीवारों पर
पहाड़ों के बेडौल पत्थपर

सर्रसर्राते पत्तों के आँगन में
ओस की बूंदों पर जमेगा अंधकार

सुबह से शाम तक
पत्थर की खानों में खटेंगे मजदूर
तपेंगे खेतों में किसान
चेहरे से चेहरे तक उड़ेंगी हवाइयाँ
टूटेगा नहीं जब तक
भूख और व्यंथाओं का अनवरत सिलसिला।