Last modified on 11 मार्च 2018, at 22:15

इकतारा / मिरास्लाव होलुब / अनिल जनविजय

ईश्वर बजा रहा है अपना इकतारा,
न साज उसे चाहिए, न गवैये, न गीत।
ख़ामोश है हमारा ब्रह्माण्ड यह सारा,
उड़ रहा है चारों तरफ़ अबूझ संगीत।

ईश्वर नहीं हूँ मैं, हूँ उसका इकतारा,
बज रहा हूँ क्यों, यह भी जानता नहीं।
इस विशाल दुनिया में नहीं है कोई सहारा,
कोई मदद करेगा, मन यह मानता नहीं।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय