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इकली घेरी बन में आय / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इकली घेरी बन में आय श्याम तैनें कैसी ठानी रे॥ टेक
श्याम मोय वृन्दान जानौ, लौट कैं बरसाने आनौ।
मेरे कर जोरी की मानो।

जो मोय होय अबेर लड़े घर नन्द-जिठानी रे॥ इकली...
ग्वालिनी मैं समझाऊँ तोय, दान तू दधि कौ देजा मोय।
तभी ग्वालिन जाने दऊँ तोय।

जो तू नाहीं करै होय तेरी ऐंचा-तानी रे॥ इकलीकृ
दान हम कबहूँ नाँय दीयौ, रोक मेरौ मारग क्यों लीयौ।
बहुत सौ ऊधम तुम कीयौ।
आज तलक या ब्रजमें ऐसौ कोई भयो न दानी रे॥ इकली.
ग्वालिनी बातन रही बनाय, ग्वाल बालन कू लउँ बुलाय।
तेरौ सब दधि माखन लुटि जाय

इठलावै तू नारि, छाय रही तोकू ज्वानी रे॥ इकली...
कंस राजा पर करूँ पुकार, पकर बँधवाय दिवाऊँ मार।
तेरी सब ठकुराई देय निकार।

जुल्म करे न डरे तके तू नारि बिरानी रे॥ इकली...
कंस का खसम लगै तेरौ, मार के कर दउँगो केरौ।
वाई कूँ जन्म भयो मेरौ।

करूँ कंस निर्बंस मैंट दउँ नाम - निशानी रे॥ इकली...
आय गए तने में सब ग्वाल, पड़े आँखन में डोरा लाल।
झूम के चलें अदाँ की चाल

लुट गई ग्वालिन मारग में, घर गई खिसियानी रे॥ इकली...
करी लीला जो श्यामाश्याम, कौन वरनन कर सकै तमाम।
करूँ बलिहार सभी ब्रजधाम।
कहते ”घासीराम“ नन्द कौ है सैलानी रे॥ इकली...