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इक्कीसवीं सदी का रथ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

निकल पड़ा है वह

खींच रहे हैं उसे
उनके ग़ुलाम और बँधुए
घुटनों के बल झुके

आगे-आगे चल रहा है
गोली दागो दस्ता

सावधान हो जाएँ वे
जिन्होंने छिपा रखी है
राख में चिंगारी
और चिंगारी में शब्द

स्वागत में लटकती झालरें
फहराती पताकाएँ
कु!ँवारी कन्याओ की हथेलियों पर थाल
अबोध बच्चों के हाथ में पुष्पहार

रथ बढ़ रहा है
घर्र-घर्र

ओ चीख़ती मिट्टी
ओ काँपती हवा
अगर कहीं दिख जाए तुम्हें
वह कँचन-काया
तो मत बताना उसका पता

वे ढूँढ़ रहे हैं उस बुढ़िया की लाश
जिसे वे गिद्धों से नुचवाएँगे

जो जानना चाहती थी
इक्कीसवीं सदी का अर्थ ।