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इक्कीसवीं सदी है / सुधेश

इक्कीसवीं सदी है इक्कीसवीं सदी है
अब नेकियों पै जीती हर रोज़ ही बदी है।

इस का न कोई चश्मा न गंगोत्री कहीं पर
बहती ही जा रही यह वक़्त की नदी है।

पलकें बिछा के बैठे हम उन के रास्ते में
आँखों में गुज़रा जो पल जैसे इक सदी है।

कैसे मैं आजकल की दुनिया में सफल होता
मेरी ख़ुदी के ऊपर अब मेरी बेख़ुदी है।

गांधी न बुद्ध गौतम न रिषभ का ज़माना
अब तो ख़ुदा से ऊँची इन्सान की ख़ुदी है।