इक प्रणय गीत ऐसा लिखें आज हम
शब्द का मौन से जिसमें व्यापार हो
हम तुम्हें सौंप दें अनकही हर कहन
ख़ुद तुम्हारे स्वरों पर भी अधिकार हो
देह से प्राण तक के सफ़र में कहीं
ना सुने कुछ छुअन, ना कहे कुछ छुअन
हो नयापन वही उम्र भर प्रेम का
हर दफ़ा अनछुई ही रहे कुछ छुअन
प्रेम का धाम हो देह के स्पर्श में
मंत्र चूमें अधर, स्नेह अवतार हो
जब हृदय की हृदय से चले बात तो
श्वास भी तब ठहरकर हृदय थाम लें
विघ्न आए न कोई मिलन में कहीं
नैन ही नैन से स्पर्श का काम लें
शब्दशः मौन पूजे धरा और गगन
मौन ही मौन में जग का विस्तार हो
तुम बनो वर्णमाला हमारे लिए
हम बनेंगे तुम्हारे लिए व्याकरण
शील से, धीर से राम-सीता बनें
हम जिएंगे वही सतयुगी आचरण
हम कहें भी नहीं पर तुम्हें ज्ञात हो
तुम कहो भी नहीं और सत्कार हो