अपेक्षाएँ
अधिक प्रबल हों
तो उपेक्षाएँ भी
सिर उठाकर
बोलने को विवश हों
तब
अवज्ञा में
देर न लगे
और भीतर से
ज्वालामुखी
फूट-फूट पड़ें
ऐसे में कोई नहीं बचता
अनुशासन हीनता के
आरोप से
अपेक्षाएँ
अधिक प्रबल हों
तो उपेक्षाएँ भी
सिर उठाकर
बोलने को विवश हों
तब
अवज्ञा में
देर न लगे
और भीतर से
ज्वालामुखी
फूट-फूट पड़ें
ऐसे में कोई नहीं बचता
अनुशासन हीनता के
आरोप से