Last modified on 18 सितम्बर 2017, at 17:04

इज़्ज़तपुरम्-35 / डी. एम. मिश्र

निर्बल-निष्क्रिय
खेाखला जिस्म
पुरूष का
जैसे दीमक
खाता हल
बिना फार का

पेटू-नामर्द-कापुरूष
रोज-रोज के तानों
और विषबुझे बाणों से
घायल करमू
बिस्तर पर
पड़ा-पड़ा
सोचता है
आर्द्र लकड़ी
आग के स्पर्श में भी
धुँए ही उगले
और तरसे
जीवन के ताप को