कल
लगती सूरज की
खुलती आँख अच्छी थी
और आज डूबती
दुश्मन
जा मरता नहीं
पाउउर की परत
हल्की हो जाती
बार-बार
बार-बार
जूड़े की पिन
खिसकी जाती
और बार-बार
कील-काँटे से दुरूस्त
लोहे की काया
अँधेरे की रेलगाड़ी
यात्री तलाशती
ठंडी सड़क पर
सीटी बजाती