तजरबा
भाव और अलंकरण के
प्राण फूँक
बुतों में भी
डाल दे
वह चाल-ढाल
कि साफ सजीव
हरकत का भ्रम हो
ज्यादा रोशनी में
मामूली माल भी
चल जाये चमक में
दुर्गंध
दब जाये
कुछ देर इल्म
के इत्र में
तजरबा
भाव और अलंकरण के
प्राण फूँक
बुतों में भी
डाल दे
वह चाल-ढाल
कि साफ सजीव
हरकत का भ्रम हो
ज्यादा रोशनी में
मामूली माल भी
चल जाये चमक में
दुर्गंध
दब जाये
कुछ देर इल्म
के इत्र में