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इज़्ज़तपुरम्-93 / डी. एम. मिश्र

जीना ही जीवन है!

चलो
सफ़र अपूर्ण अभी
हार नहीं मानो
आखिरी साँस तक!

मंद-मंद अनवरत
प्रज्वलित वर्त्तिका
लौ लगी
अटूट प्रेम
रिक्त है
अतृप्त है
विकल उर
अशेष मन
प्रतीक्षारत

आशा में ढूँढता
अनन्त सुख