कांई दिन हा बै
जद म्हारी आवाज रै सागै
थूं पार कर जावती
अंधारी गळी
साव अेकली।
कांई ठाह कींकर
ओ अंधारो उतरग्यो
म्हारै अंतस में।
इण ओपरी ठौड़
अेकलो ऊभो
तरसूं-
फगत अेक हेलै नैं
पण थूं कठै?
कांई दिन हा बै
जद म्हारी आवाज रै सागै
थूं पार कर जावती
अंधारी गळी
साव अेकली।
कांई ठाह कींकर
ओ अंधारो उतरग्यो
म्हारै अंतस में।
इण ओपरी ठौड़
अेकलो ऊभो
तरसूं-
फगत अेक हेलै नैं
पण थूं कठै?