बड़ी नहीं हुई उम्र के साथ
अच्छा है
बचपन है मेरे साथ
नज़र दर्पण
दिखता है जिसमें
सबका असली चेहरा
घृणा नहीं करती किसी से।
लिया नहीं किसी से कुछ
दुःख के सिवा
दिया-हाँ दिया है
सुख...
किया, हाँ किया है
प्रेम
सच है
खूब ठगी गयी
इत्मीनान है
ठगा नहीं किसी को।