Last modified on 1 सितम्बर 2014, at 14:42

इत्र / अविनाश मिश्र

मैं ऐसे प्रवेश चाहता हूँ तुम में
कि मेरा कोई रूप न हो
मैं तुम्हें ज़रा-सा भी न घेरूँ
और तुम्हें पूरा ढँक लूँ