रात
ठंडी और लम्बी —
जागते
कब तक रहेंगे ?
रात
गीली ओस-भीगी,
शीत का अभिशाप
कितना और...
चुप-चुप सहेंगे ?
थरथराता गात,
कुहरे में
झुके हैं पात,
अपनी
वेदना को और....
कब तक कहेंगे ?
रात
ठंडी और लम्बी —
जागते
कब तक रहेंगे ?
रात
गीली ओस-भीगी,
शीत का अभिशाप
कितना और...
चुप-चुप सहेंगे ?
थरथराता गात,
कुहरे में
झुके हैं पात,
अपनी
वेदना को और....
कब तक कहेंगे ?